ख़्वाब
ख़्वाब
एक ख़्वाब जो मेरा टूट गया ,
लगा अपना कोई छूट गया।
कई दिनों से पलकों पर जो रूका हुआ था,
आंखों का वो आँसू आज यूं छलक गया।
रेत का घरौंदा बना, सपना बसाया था...
कोई आंधी ना उड़ा दे सोच मुट्ठी में दबाया था।
ज्यों ज्यों हवा की रफ्तार बढ़ी
मुठ्ठी मेरी कसती गई।
ज्यों ज्यों मुठ्ठी कसती गई..
हाथों से रेत फिसलती गई।
सोच रहे थे सपना मेरा बच गया है,
इसको अब साकार करें
तूफान जो अब रूक गया है।
यही सोच खोली मैंने अपनी मुट्ठी ,
आखिरी कण भी मुझसे बहक गया।
कई दिनों से पलकों पर जो रूका हुआ था..
आंखों का वह आँसू "वंदे" छलक गया।