दोस्ती
दोस्ती
उसका था बचपन का साथी
झगड़ उसी से चला गया,
मन की बहती धारा को
अंदर तक मानो हिला गया।
पता चला ना किसी बात का
जिस पर था वो हुआ खफ़ा,
रिश्तों की ये डोर है नाजुक,
दूर-दूर तक फैली वफा।
बीत गए दिन और महीने,
साल ऐसे ही गुजर गया,
ये भी अपने कामों में लग,
उलझ गया, यूँ सँवर गया।
एक रोज अख़बार में आया
हुआ लापता खुद कर के,
ढूँढ-ढूँढता आ गया वापिस
दोस्त पुराना चलकर के।
देख इसे वह सही सलामत
रोने लगा खुश होकर यूँ,
मिल गए दोनों दोस्त इस तरह,
पा लिया कुछ खोकर यूँ !