ख्वाहिशें कुछ ऐसी भी
ख्वाहिशें कुछ ऐसी भी
हुस्न-ए-दीदार का आप ज़रा मजा तो लीजिये,
चाँद उतरा है जमीं पर ज़रा इशारा तो दीजिये,
ज़ुल्फों को अपनी आज माथे पर सजा कर,
अरमानो को मेरे थोड़ा मचल तो जाने दीजिए,
कातिल निगाहों से तीर मुहब्बत के चलाकर,
इक दफा हमे भी तो घायल हो जाने दीजिए,
खूब ग़ज़लें लिखी हैं बेवफाई पर हमने सनम,
कर के वफ़ा इश्क़ मेरा मुकम्मल हो जाने दीजिए,
ख्वाबों में भी तुमसे गुफ्तगू कर लेंगे हम,
ज़रा एक बार सुकूं की नींद तो आ जाने दीजिए,
तेरे दिल मे भी इश्क़-ए-समंदर बहने लगेगा,
अपनी कश्ती का मुझे माझी तो बन जाने दीजिए...!