कोई वादा तो नहीं मेरा
कोई वादा तो नहीं मेरा
थक सी गई हूँ दुनियादारी निभाते निभाते,
रोज़ वो ही सब काम करते करते,
कभी कोई रूठ जाता है तो कभी कोई और,
हर किसी को खुश करते करते अपनी
ही ख़ुशियाँ खो गई है,
दिलों के ये रिश्ते तोड़े भी तो कैसे,
वादे किए है जो खुद से वो तोड़े भी कैसे,
जिंदगी हर पल इम्तिहान लेती रहती है,
ये इम्तहीनों के दौर से पीछा छूटता नहीं है,
काश की बचपन फिर से लौट आये,
ना ही कोई चिंता रहे ना ही जिम्मेदारी,
चैन की नींद सुकून से सो ले,
थोड़ा सा हँस ले थोड़ा सा मुस्कुरा ले,
इन सब जिम्मेदारियों से दूर भाग जाए....
रोज़ लिखने का रोज़ किसी से मिलने का
कोई वादा तो नहीं मेरा,
लेकिन फिर भी कोशिश ज़रूर करेंगे
अपने ज़ज्बात बयां करने की,
क्योंकि ये एहसास हम तब ही बयां करते है,
जब इच्छा दिल में हो इन्हें बयां करने की,
कलम भी साथ तब ही देती है
जब कोई प्रेरणा बनकर सामने नजर आए,
वरना कितनी भी कोशिश कर लो
एक शब्द भी लिख नहीं पाते हम...