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Dheeraj Sarda

Drama Inspirational

5.0  

Dheeraj Sarda

Drama Inspirational

परिंदे की ख्वाहिश

परिंदे की ख्वाहिश

1 min
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परिंदा चाहे छूटना, 

इस बंद पिंजरे से।

चाहे होता हो आदर, 

या लगा के रखा हो सीने से।।


ना है किसी की कमी, 

फिर भी आँखो में है नमी।

है खुले अंबर की चाहत,

बातें हवा से है करनी।।


दुनिया है बड़ी बेदर्दी, 

खुला पिंजरा अनजाने से।

पाया खुद को बिन परों के, 

आया जब उड़ने की चाहत से।।


समय ने उसके जख्म भरे, 

वो फिर हरा हो गया।

सीने में थी एक कसक, 

बस वो मौका छूट गया।।


था तैयार वो इस बार, 

अवसर ना जाने देगा हाथ से।

चिढ़ती थी वो सलाखें, 

तू प्राणी हार गया मुझसे।।


एक दिन आयी वो घड़ी, 

घर छोड़ने लगा खुशी से।

आया तभी उनका ख़याल, 

रखा मुझे मेरी मर्ज़ी से।।


लेकिन ऐसे सलाखों का दर्द, 

ज़्यादा है उनके प्यार से।

पहुँचा खुले आसमान में, 

वाकिफ़ हुआ जीवन की सच्चाई से।।


अब कोई दिल ना रहे कैदी, 

लड़ो तुम ज़िंदगी से।

पहचानो खुद को, 

और आज़ाद रहो बंदिशों के पिंजरे से।।


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