ऐ क़िस्मत
ऐ क़िस्मत
ऐ क़िस्मत, क्यों रोकती है मुझे? जो करना चाहता हूँ करने दे ना
कृतार्थ जीवन जीकर मुझको, सुख से, चैन से मरने दे ना
जीवन जब ये मेरा है, इसपर तेरी हस्ती क्यों ?
तेरी ही में सुना करूँ,ये मुझपे जबरदस्ती क्यों ?
पतवार छोड मेरी कश्ती का,मुझे साहिल पे उतरने दे ना
ऐ क़िस्मत ......
हर काम में मेरे तू, क्यूं टांग अड़ाती रहती है ?
मन में संजोई इच्छाओं को,हरदम छुड़ाती रहती है
सैलाब जो मन में दबा हुआ है,जोर से उसे उमड़ने दे ना
ऐ क़िस्मत ......
मुझे बता तो सही मैं,क्यूं तेरी गुलामी करूँ ?
अपनी ज़िन्दगी की क्यूं,तेरे हाथों नीलामी करूँ
और न सता, मुझे भी जीवन में,खुशियो के रंग भरने दे ना
ऐ क़िस्मत ......