सदाएँ
सदाएँ
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एक संगदिल उदास आवाज़ देती है सदा
हर रात मुझे ड़सती उस मोड़ से बहती
मेरे कानों में दर्द घोलती
जब हर राह मोड़ ली मैंने
जो जाती थी उनके दर तक
किया था जब सजदा दहलीज़ पर बैठे
मैंने सदियों
नागँवार गुज़रा तुम्हें
अब तो दोराहे पर खड़े आह ना भरो
लौटने की उम्मीद ने मेरी दम तोड़ दिया
उठा लो कतरे
अब मेरी मौजूदगी पड़ी है बिखरे
ये अश्क क्यूँ बह रहे है अब
हुई मेरी कद्र जब तन राख बना जलकर
कह दो कोई उन्हें
श्मशान से अस्थियाँ आती है कलशे में ठहरी
लौटकर नहीं आते
बह गये जो बेमिसाल लम्हें