पलाश के फूल
पलाश के फूल
मौसम बदला बदली हैं फिज़ाएं
ठंड से नाता तोड़ गर्म हो गईं हवाएँ
चहुँ ओर फूलने लगे हैं लाल सुर्ख़ पलाश
जैसे धरा ने बाँधा हो कोई कोमल मोहपाश
ओढ़ कर लाल रंग का झीना सा घूँघट
चंचल प्रकृति लेती है हौले से करवट
शाखाओं ने पुराने पत्तों को दे तिलांजलि
सुन्दर फूलों से भर ली है अपनी अंजलि
उन्हें है नवागत हरी कोंपलों का इंतज़ार
पर नियति में है झेलना मौसम के प्रहार
चैत की तपती दोपहरी और कहीं दूर
नज़रों तक फैले पलाश के दरख़्त
ठूँठ से तने पेड़ों पर सिर्फ होते हैं लाल
घने सुर्ख़ फूलों के दस्तखत
जैसे बिन हरियाली भी दहकते हैं पलाश के फूल
वैसे ही इस क्षणभंगुर निष्ठुर दुनिया में
शाश्वत हैं, और खिलते हैं सच्चे प्रेम के फूल