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थाम कर पृथ्वी की गति

थाम कर पृथ्वी की गति

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थाम कर पृथ्वी की गति

     --दिविक रमेश

 

चाहता हूँ

रुक जाऐ गति पृथ्वी की

काल से कहूँ सुस्ता ले कहीं

 

आज मुझे बहुत  प्यार करना है  ज़िन्दगी से।

 

खोल दूँगा आज मैं

अपनी उदास खिड़कियाँ

झाड़ लूँगा तमाम जाले और गर्द

सुखा लूँगा सीलन-भरे परदे।

 

कहूँगा

सहमी खड़ी हवा से

आओ, आ जाओ आँगन में

मैं तुम्हें प्यार दूँगा,

जाऊँगा तुम्हारे पीछे-पीछे

खोजने एक अपनी-सी ख़ुशबू

शरद के पत्तों-सा।

 

रात से कहूँगा

ले आओ ढ़ेर से तारे

सजा दो जंगल मेरे आसपास

मैं उन्हें आँखों की छुवन दूँगा।

 

खोल दूँगा आज

समेटी पड़ी धूप को

जाने दूँगा उसे

तितलियों के पंख सँवारने।

 

थामकर पृथ्वी की गति

रोककर कालचक्र

आज हो जाऊँगा मुक्त।

 

बहुत प्यार करना है ज़िन्दगी से।

 

 

 


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