चुनावी दंगल, पहुँच गया जंगल
चुनावी दंगल, पहुँच गया जंगल
आज कल तो माहौल कुछ ऐसा है
कि जंगल में भी चुनाव होने लगे
राजशाही खत्म हुई और जानवर भी
अपना मताधिकार समझने लगे।
घोषित हो गई विविध पार्टियाँ
उल्लू चुनाव अधिकारी बन गए
शेर, गीदड़, भालू ,हाथी आदि.
अपने-अपने पक्ष के उम्मीदवर बन गए।
लोमड़ी की थी सारे चुनाव मे
एक छुपी हुई रणनीति
अब चालाक लोमड़ी के
रग-रग में बसी राजनीती ?
लोमड़ी की मंशा कुछ और ही थी
पर दिखाई देती कुछ और थी।
शेर के प्रत्यार्शियों को साथ मिलाकर
महागठबंधन उसने कर लिया।
शेर को हराने का उस ने
शातिर मंथन कर लिया।
मतदाता पशुओं को भी
उसने बहका रखा था।
बदबूदार जानवर को भी
वादों से महका रखा था।
गधे के आगे बाँध कर गाजर
पीठ पर स्वार्थ की गठरी रखी थी।
दौड़ता रहा वो बेचारा गधा
पर वो गाजर गधे ने कहाँ चखी थी ?
कौए को भी बहका दिया
"पक्षिओं के राजा तुम ही बनोगे।
यदि सभी कौए मिल कर
मतदान हमारे लिए करोगे"
शेर और बब्बर शेर जंगल के हित मे
अपनी रणनीति बना रहे थे
सियार और भेड़िये पशुओं को
ख्याली पुलाव खिला रहे थे।
भेड़िये को बना दिया गया मीड़िया
ओह ! भेड़ की खाल मे भेड़िया
भेड़ो के बीच रह कर भेड़िये ने
उन के विचारों पर बाँध दी बेड़ियाँ।
गलत मार्ग पर चलाकर भेड़ों को
वो चढ़ता रहा सफलता की सीढ़ियाँ।
शाकाहारी पशुओं को भी
शेर के विरोध मे भड़का दिया
असीमित हरियाली होने के बावजूद
सूखे का भय ज़हन मे डाल दिया।
रक्षामंत्री उम्मीदवार बंदर उत्सुक था उस तरह
वो कहते है ना,"बंदर के हाथ में उस्तुरा"
मछली तथा कछुए भी डरे सहमे से थे
पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर करे तो कौन ?
धैर्यवान वनराज ने अपनी
सूझबूझ का परिचय दिया
विरोध तीव्र होने के बावजूद
अपना काम बखूबी किया।
विरोध के विष को
स्वयं के गले में रख कर
उस ने पशु-पक्षिओं में
अमृत बाँट दिया।
ठीक मतदान ले पहले
लोमडी की धूर्त चाल
वरिष्ठों के समझ में
जैसे ही आ गई।
लोमड़ी के उस मनसूबे की खबर
जंगल मे आग की तरह फैल गई।
मतदान का जब दिन आया
सभी ने मतदान किया
किसी ने एक को तो
किसी ने दूसरे को मत दिया,
तो किसी ने नोटा दबा दिया।
परिणाम का दिन जैसे
हर्षोल्लास छा गया
पूर्ण बहुमत से जीतकर
वनराज सत्ता मे आ गया।
चाहे राजशाही हो या लोकशाही
सुशासन वनराज से बेहतर
कौन कर सकता है ?
वो तो ग़नीमत समझो कि
चुनाव प्रक्रिया में
इंसान सहभागी नहीं थे
वर्ना अंजाम-ए-चूनाव क्या होता ?