अम्मा बोलो जरा
अम्मा बोलो जरा
उस चांद पर एक भालू रहता था,
अम्मा तुम बोलो जरा
हम से खेलता-छिपता रहता था,
ऐसा है क्या, बोलो जरा...
उस भालू के चेहरे पे मैंने,
अनगिनत साये देखे थे
कितनी थी उसमें बताओ,
तुम्हारी जीवन की कहानियां
उस चांद पर एक भालू रहता था,
अम्मा तुम बोलो जरा...
अब, तुम चंदा मामू से ना कहना
लल्ला को तुम खिलाओ ना
चांदी के कटोरे में, चांदी के चमचा से,
लल्ला को मेरे... दूध पिलाओ ना
उस भालू के आंखों में अम्मा
मैंने तुम्हारे... गुजरे कल देखे थे,
उस कल में रोते-चिल्लाते
तुम्हारी जवानी देखे थे...
उस चांद पर एक भालू रहता था,
अम्मा तुम बोलो जरा...
वह भालू मुझसे कहता था अम्मा,
जीवन तुम्हारी आंधियों से भरे थे,
आंसू के बिछावन पे सो-सो कर
अपनी जवानी तुमने खोए थे,
उस चांद पर एक भालू रहता था,
अम्मा तुम बोलो जरा...
बाबूजी के तारे बनने से,
तुम अकेली पड़ गई थी
दुनियादारी की गुफा में,
बिन सहारे फंस गई थी
बेटियों को लोरियां सुनाती थी,
अम्मा भोर में तुम
औऱ रात के ममता की आंचल में,
लोरी सुनाती, सुलाती थी मुझे तुम
उस चांद पर एक भालू रहता था,
अम्मा तुम बोलो जरा...
उस रोज भी वह भालू अम्मा,
वैसे ही बैठा था चांद पर
चंदा मामू खुश थे जिस शाम,
तुम्हारे रूह पर..!
तब भी क्यों न जाने अम्मा,
चंदा मामू रो रहे थे..!
तुम्हारे जीवन की उस सांझ पर,
वह धुंधला हो गए थे...
तुम्हारी मिट्टी, मिट्टी में मिलने से पहले
अम्मा चंदन की खुशबू दे रही थी
एक जीवन में कई जीवन को,
चमेली-सी खुशबू दे सोई थी
तुम्हारी मंजिल को देखकर अम्मा,
भालू उस रात काली चादर में,
लिपट गया था...!
रोते-चिल्लाते वह चाँद को,
एक अनोखा दाग दे गया था
उस चांद पर एक भालू रहता था,
अम्मा तुम बोलो जरा...!!