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मेरे पापा

मेरे पापा

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सोची लिखने की आज फिर शुरुआत करूँ

जंग पड़ी लेखनी को कोई सौगात दूँ,


तो याद आ गई मुझे मेरे पापा की।

ग्यारहवीं कक्षा मे थी तब पहला लेख,

हुआ प्रकाशित वो दो अगस्त पापा का जन्मदिन,

पैर का हुआ था ऑपरेशन पर सब दर्द भूल,

खुश होके दिए आशीर्वाद मेरी आँखे हुई नम,

फिर तो शुरुआत हो गई,लेख छपने लगे

जो देखी महसूस की,वो कलम की धार बनने लगे

आज इतने दिन बाद जब कर रही लिखने की शुरुआत,

तो मुझे याद आ गई मेरे पापा की।


बचपन की निश्छल मुस्कान,

छुटपन के हर पल

दशहरा का मेला ,या हो दीवाली की पूजा,

जब हम छोटे,और शरारतें बड़ी थी,

हर डांट भी मीठी लगा करती थी,

पापा की बाइक से रेस लगा करती थी

भाई बहनो के संग , मस्ती में हम

और ठंड का यही मौसम मुझे,

याद आ गई मेरे पापा की।


आज दमकती ससुराल की शोभा हूँ,

दीवाली की तैयारी में बढ़ी व्यस्त हूँ,

बच्चों के गुंजन में मस्त,सबका ध्यान रखती

पर भूल नहीं सकती अपना बचपन,

जब ख्वाहिसे छोटी,खुशियां बडी होती थी

छोटी छोटी बातो में भी गुस्सा हुआ करती थी, मम्मी की सीख़ मेरी दुनिया हुआ करती थी,

त्योहारों के इस मौसम में आज बचपन की

मुझे याद आ गई मेरे पापा की।



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