ख्वाबों का हमसफर
ख्वाबों का हमसफर
बिना बोले हर बातों को जान जाता,
मेरी जज्बातों को पहचान जाता,
वो मेरा हमसफ़र था।
मेरी आवाज से उसकी सुबह होती,
मेरी लय में जिसकी आँखें सोती,
बाँहों में दिन, रात और दोपहर था,
वो ऐसा ही हमसफ़र था।
रुठ जाते हम उन्हें रिझाने के लिए,
जान हाजिर करते वो मनाने के लिए
हर पल हमें खो देने का जिसे डर था,
वो ऐसा ही हमसफ़र था।
गम के आँसू कभी गिरने न दिया,
खुशियों के आँसू को रूकने न दिया।
ख्वाबों में बसा जिसका शहर था,
वो अजनबी सा हमसफर था।
सहसा आँख खुली तो मैंने ये जाना,
ख्वाब में देखा मैंने झूठा फँसाना,
यह हकीकत नहीं ख्वाबों का शहर था,
देखा था जिसे ख्वाब में बना लहर था।
ख्वाब को ख्वाब रहने दे तो अच्छा होगा,
ये ख्वाब कभी भी न सच्चा होगा।
ये सब सिर्फ ख्वाबों की बुनी कहानी है,
जिंदगी ये तुझे अकेले ही बितानी है।।