रोज डे
रोज डे
यूँ तो किसी बगिया में
गुलाब खिल ही जाते हैं
यूँ तो चेहरे पर फिर से
मुस्कान बिखर ही जाती है।
यूँ तुम सपनों में भी कभी
मुझसे मिलने आ जाती हो
यूँ किसी साहिल पर भी कभी
तुम पहर पहर भर बैठ जाती हो।
कभी आना मेरे शहर में
मैं आँखें बिछाए बैठा हूँ
कभी आना मेरी गली में तुम
मैं एक आस लगाए बैठा हूँ।
कभी आना मेरे आँगन में
मैं गुलाब बिछाए बैठा हूँ
फिर हाथ में हाथ थामना तुम
धीरे से गले भी लगा लेना।
बरसों से इश्क किया तुमसे
तुम बादल बनके बरस जाना
बैचेन निगाहें तरस ही गई
फिर हर पल मिलना तुम मुझसे।
यूँ गुलाब लोग दिया करते हैं
तुम खुद गुलाब हो मेरे लिए
ये अश्क मुहब्बत है प्रिए
तुम्हें रोज मोहब्बत करना है।
गुलाब के पर देखो टूट गए
मेरी आँखों में तुम बस ही गए
यूँ प्रेम गीत तुम गाना कभी
मेरे जीवन में चले आना कभी।।