Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

मेरे दोस्त !

मेरे दोस्त !

3 mins
20.2K


 

सपने मेरी आँखें

देखती थीं

पसीने की बूँदें

तेरी पेशानी पर होती थीं

……………

 

जब हमने साझा चुल्हा बनाया था

सींक एक ही रखी थी

अपनी तंदूरी रोटियाँ

हम उसी इकलौते सींक से निकालते थे

बारी-बारी

अपनी भूख और स्वाद के निमित्त

धर्म और भाषा की

देश और राजनीति की

आस्था और अनास्था की

अपने और पराए की

ऐसी बाढ़ आई कि

उसमें मिट्टी का

हमारा वो साझा चुल्हा

एक झटके में बह निकला

अब वह सींक तुम अपने साथ

ले जा रहे हो अपने नए वतन को

बिछुड़कर अपने

पुराने दोस्त और वतन से

मेरे दोस्त!

वह सींक तुम बेशक ले जाओ

मगर बताओ

पके सपनों की गंध

मिट्टी और आटे की

वह गरमागरम सोंधी ख़ुशबू

आग की लौ में तमतमाए

दो चेहरों की वो संगत

दो जोड़ी हथेलियों की

वे तेज़-तेज़ थापें

क्या हम फिर बाँट पाएँगे

मेरे दोस्त !

क्या मैं और तुम मिलकर

मिट्टी का वैसा ही

बड़ा साझा चुल्हा

फिर से नहीं बना सकते

जहाँ रोटियाँ सिंकने के साथ

आस-पड़ोस के दुःख-दर्द भी

सेंके जाते थे 

मेरे दोस्त !

उस साझे चुल्हे के पास

हम दुबारा जमा नहीं हो सकते!

दो देहरी और सरहद से

सिर्फ तुम निकले थे

मेरे-तुम्हारे सपनों की सिलवटें तो 

हमारी साझी गली की

कच्ची मिट्टी में ही कहीं रह गई थीं

जहाँ दिन-दिन भर कबड्डी खेलते हुए

हमने अपनी-अपनी ताकत

खूब आज़माई

और चाहे हारता कोई हो

हँसते हम दोनों थे 

जहाँ गिल्ली-डंडा और कंचे खेलते

अपनी-अपनी निशानेबाजी पर इतराते

और एक-दूसरे को शाबाशी देते  

हम बड़े हुए थे

मेरे दोस्त!

मेरी जागती आँखों में

सोते सपनों को

अब थपकी कौन देगा!

तुम्हारी उनींदी नींद

अब किसके आकस्मिक

शोर से झल्लाकर टूटेगी !

मेरे दोस्त!

क्या हमारी बेमतलब की

इन अठखेलियों का

अब कोई मतलब नहीं रह गया है

क्या हम सचमुच

इतने बड़े हो गए हैं कि

अब हम एक देश में

एक साथ नहीं रह सकते

क्या हमारे विचारों का हुजूम

इतना बड़ा और अलहदा

हो गया है कि 

अब उनपर एक साथ 

एक आसमान के नीचे

चर्चा नहीं की जा सकती

क्या हमारे-तुम्हारे आसमान

अब अलग-अलग हो जाएंगे

धरती की तो हमने तकसीम कर ली

मगर क्या आसमान को भी

हम बाँट पाएँगे  

क्या भिन्न राय रखना

अनिवार्यतः दुश्मनी और अलगाव

के ही परिणाम में देखा जाना चाहिए

 मेरे दोस्त !

क्या हम फिर से बचपन के

उन दिनों की ओर

नहीं लौट सकते

जब तेरा-मेरा कुछ जुदा-जुदा नहीं था

तब सपनों की साझेदारी में हम

लाहौर से दिल्ली तक

एक ही तबियत रखते थे

मेरे दोस्त!

क्या  ज़मीनपर

खींची किसी लकीर में  

इतनी ताकत है कि वह

अमन की हवा को

मुहब्बत की आँच को

और भाईचारे की बारिश को

किसी सरहद में क़ैद कर सके!

मेरे दोस्त!

हम अलग तो हो गए हैं 

मगर क्या हम देर तलक 

अलग-अलग रह पाएंगे !

.................

 


Rate this content
Log in