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मुहब्बत थी तो वफ़ा क्यों नहीं

मुहब्बत थी तो वफ़ा क्यों नहीं

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अगर तुमको मुहब्बत थी मुझे अपनी वफ़ा देते |

यहाँ तक कर गुज़रते की यहीं जन्नत दिखा देते |

नज़र के सामने हर पल तुम्हारे मैं रहूँ जानम,

फक़त यह सोचते गर तुम नहीं कोई दग़ा देते |

इश़ारों ही इश़ारों में ज़रा हमराज़ तो कहते,

मुखर के क्यों गऐ ऐसे सनम कुछ तो बता देते |

बिताये साथ जो लम्हे कभी वो याद आते तो,

निगाहें भीग कर कहतीं मुझे तुम क्यों सज़ा देते |

करूँ प्राँजल शिकायत मैं ख़ुदा की ही ख़ुदा से अब,

सितम गर ये दिलाने थे ज़रा नफ़रत सिखा देते | 

 

........प्राँजल व्यास 

 


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