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Meenakshi Kilawat

Others

4.4  

Meenakshi Kilawat

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गम

गम

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लौट कर आते हैं गम

फिर से सताते हैं गम

दिल गम का लगता नहीं हो जैसे

जब से मिले हैं हम गम से।।


टकरा जाते हैं गम रह-रहकर ख्यालों में

ढल न जाए यह जिंदगी मेरी गमे आलम में

गम की आवाज नहीं होती इत्तेफाक से 

गम का सैलाब होता है जहान में।।


गम मुझसे कहता है करो बंदगी मुझसे 

डराकर फुसलाता कराता भेट

गम आता मेरे पास रोज रोज 

करता है हौसले को मटिया मेट।।


चूमता हूँ मैं गमों के फूलों को 

तो तड़प जाती है गम की मर्जी 

खुद हो गई तबाह मुझे पर

ना कर सकी मुझे वो बरबाद।।


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