क्यों करते हैं वे ऐसा ?
क्यों करते हैं वे ऐसा ?
बाबा, तेरी ऊँगली जो छुटी तो डर लगता हैं|
डर लगता हैं,
टॉफ़ी और जलेबी की अपनी लालच से,
नए नए बने अंकल और उनकी चाचानी बंध बातों से|
एसे में अगर, मेरी पसंद एक खौफ़ बन जाए,
तो इतना न सोचना, पर उनसे पूछना
क्यों करते हैं वे ऐसा ?
माँ, मेरी आवाज़ नहीं आती क्या ?
तेरे आंचल का अंबर नहीं हैं यहाँ,
न मरी घुड़िया सिहराने रखी हैं|
इस घर कोई नहीं मुझे उस घर पहुँचाने को,
एसे में अगर, मैं अपना ही घर भूल जाऊं
तो इतना न सोचना, पर उनसे पूछना
क्यों करते हैं वे ऐसा ?
उजाले में आँख नहीं खुलती,
अँधेरा चीख़ और दर्द को यार बनाए बैठा है|
कृष्ण भी अपनी कृष्णा (दौर्पदी) को भूल गए हैं शायद,
जो आज हर घर में रावण राम बना बैठा है|
एसे में अगर, कुछ मंदिर और मस्जिद विरान हो जाएँ,
तो इतना न सोचना, पर उनसे पूछना
क्यों करते हैं वे ऐसा ?
उन भेड़ियों ने नोचा है
मुझे, मेरी रूह को
अपने पंजों तले रौंदा हैं|
इंसानों की आदालत में खड़े तुम,
उन कुत्तों का मज़हब पूछते हो,
एसे में अगर, एक धर्मं इंसानियत भी खत्म हो जाए,
तो इतना न सोचना, पर उनसे पूछना
क्यों करते हैं वे ऐसा ?
इंसाफ़, हक़ीकत में होता है क्या ?
अब फ़र्क नहीं पड़ता|
इज्ज़त की कफ़न अगर मिलती हो
तो ओढ़ा देना|
आने वाले वक़्त में कुछ ऐसा करना,
मेरी बहनों को बचा लेना|
एसे में अगर, तुम मुझे भूल जाओ,
तो इतना न सोचना, पर उनसे पूछना
क्यों करते हैं वे ऐसा ?