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S Ram Verma

Others

4.9  

S Ram Verma

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जन्मदिन !

जन्मदिन !

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आज ही के दिन रात के लगभग, 

इसी वक़्त जब घड़ी में आठ बजकर 

दस मिनट हो रहे थे,


मैं भी अपनी माँ के गर्भ से निकल 

कर उनके पैरों में आ गिरा था, 

जैसे गर्म तवे पर सिकने के लिए 

एक आटे की लोई आ गिरती है,

 

जो होती है बिलकुल नर्म-नर्म, 

जिसे समय खुद-ब-खुद आकार 

देता है,


जैसा विधाता ने लिख कर भेजा होता है, 

उसका भाग्य जिसे करना ही होता है, 

उसे सहर्ष स्वीकार और कितने गर्व 

की बात है, 


कि हर एक बच्चा गवाह होता है, 

अपने माँ-और पिता के अनुराग का,  

ठीक वैसे ही जैसे,


आज कोई मुझे चाहे या ना चाहे 

लेकिन हूँ तो मैं भी निशानी अपने 

माँ-पिता के प्रेम और अनुराग का ही !


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