इंतज़ार में तेरे गुज़ारे हैं पल
इंतज़ार में तेरे गुज़ारे हैं पल
इंतज़ार में तेरे गुज़ारे हैं पल,
तुमसे कैसे कहें कितने सारे हैं पल,
कभी बन जाते हैं ये तनहा मौसम,
कभी हर वक़्त तनहाई, तुम्हारे हैं पल ,
हर पल की है अपनी दास्तां,
तुमसे कैसे कहे कितने सारे हैं पल,
कभी ये बन जाते है तेरी मेरी कहानी,
कभी रात के टिमटिमाते तारे हैं पल,
हर पल अपने आप में है तनहाई,
तुमसे कैसे कहे कितने सारे हैं पल,
कहीं ये बन जाते है ज़िंदगी भर का गम,
कभी खुशी से भी ज्यादा प्यारे हैं पल,
पल ही बन जाते हैं पेड़ के सूखे पत्ते,
तुमसे कैसे कहे कितने सारे हैं पल,
कभी तो दे देते है कदमों को आहट,
कभी इन्हीं कदमों से चलकर हारे हैं पल,
तनहा शायर हूं