सिलसिला
सिलसिला
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अक्सर तुम्हारे…
कितने करीब आ जाते हैं हम…
और …
कई बार…
तुमसे …
कितनी दूर चले जाते हैं हम...
ना जाने कितनी बार…
खुद को…
बताने की कोशिश में…
खामोश हो जाते हैं हम...
खो से जाते हो तुम...
और फिर…
उसी खामोशी में…
नीरवता में...
खिलखिला के हँस पड़ते हैं…
हम दोनों...
कब से…
जाने कब से…
चला आ रहा है…
ये सिलसिला …….
और…
ना जाने कब तक…
चलता रहेगा...
शायद…
तुम भी कुछ महसूस करते हो …
और शायद वही …
जैसा हम महसूस करते हैं...
फिर क्यों...
चुप हो तुम ….?
और क्यों…
चुप हैं हम?
और क्यों है...
ये दूरी…
ये खामोशी ….?