ग़ज़ल
ग़ज़ल
कहां तक छुपाओगे सूरत नक़ाबी
तुम्हें ढुंढती हैं ये निगाहें शराबी।
दिलनशीं आज आई ये ऋतु है
बहारों ने भी खुश्बू लुटाई गुलाबी
करो ना सीतम अब वफ़ा भूलने का
बता दो हमारी अगर है ख़राबी।
चलो साथ मेरे भले मीत बन के
लगाकर मोहब्बत की मीठी सदा भी।
तबस्सुम तुम्हारा लुभाता रहा है
न भुलेगी मासूम हमें ये अदा भी।