मेरे ख़्वाब
मेरे ख़्वाब
मेरे ख़्वाब तुमसे ही अटखेली करे।
मेरे सपनें तुम्हारी ही गली से गुजरे
जो समन्दर ठहरा था ,
नयनों के पीछे
वो रोके न रुके।
तुम ही समझालो
अगर तुम्हारी ये सुनें।
मैं तो चाहूँ नए अरमानों को
पर मेरी संवेदना रहे,
हर वक़्त तुमसे ही उलझ।
बड़ी मचलती है,
आहों की यह कसक।
जब -जब ख़ुश्बू तुम्हारी ,
मेरे दामन से मिले।
मेरे ख़्वाब तुमसे ही अटखेली करे।