शहर है मेरे कातिलों का
शहर है मेरे कातिलों का
ये ही शहर है मेरे कातिलों का
यंही मेरा वजूद साँस लेता है।
मैं रोजना निकलता हूँ घर से
यहीं मेरा गुरूर फाँस देता है।
जब रूककर देखता हूँ भीड़ को
तो लगता है कोई हादसा हुआ है।
प्यारे फूलों को तरस गए हैं हाथ
तो नस्तर हाथों के देखता रहता हूँ।
ये ही शहर है मेरे कातिलों का
यहीं मेरा वजूद साँस लेता है।
असमंजस की ये दुनिया निराली है
आदमी ज्यादा कम पौधे हो गए हैं।
तू आदमीयत जी कुछ पा ना सका
तभी इस दुनिया में फिर आ ना सका।
ये ही शहर है मेरे कातिलों का
यहीं मेरा वजूद साँस लेता है।
बस जाता जो इस दुनिया में तू कहीं
ये आदमी तुझे भी मजहब सा बाँट देता।
मेरा तो है ही ये कातिल सारा शहर
तुझे चीरफाड़ कर हर जगह टांग देता है।
मैं रोज़ाना निकलता हूँ घर से
यहीं मेरा गुरूर फाँस देता है।
ये ही शहर है मेरे कातिलों का
यहीं मेरा वजूद साँस लेता है।।