गुनहगार
गुनहगार
मैने देखा है
रोटी को आसमान से गिरते पानी में
मरते सुना है भूख और भूखे को
छपाक की आवाज़ पर
बजाई थी मैंने भी ताली
मौत का कुँआ
मेरे बचपन को
गुनहगार दर्शक कहता है
आज भी
आग लगते ही
नींद उड़ जाती है मेरी
अब चीख़ पड़ती हूँ
तालियाँ नहीं बजा पाती।