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S Ram Verma

Romance

4.9  

S Ram Verma

Romance

मोहब्बत भी अजीब होती है

मोहब्बत भी अजीब होती है

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718


रूहानी दिलों में जब भी, 

ये मोहब्बत जागती है;

 तो पहले ये नींदें उजाड़ती है,

फिर ये झूमती है और नाचती है;

 ये फैलती है और बोलती है, 

फिर हर एक किये गए वादे को तौलती हैI

 

सूली और सूल सी होती है, 

ये मोहब्बत भी कितनी अजीब होती है; 

 ये जब फैलती है तो पेड़ बनती है, 

और ये छाँव कर के भी धूप देती है; 

 कभी कभी तो बस आप अपनी, 

ही रक़ीब होती है ये मोहब्बतI

 

ये मोहब्बत कितनी अजीब होती है,  

लहू की सूरत ले रगों में दौड़ती है; 

 फिर वो ही ख़्वाब बन कर रूहानी, 

दिलों की नज़रों में ठहरती है; 

बादल बन कर फ़लक से बरसती है, 

गर इसे दरिया में डाल आओ तो भी;  

एक समंदर बनकर उभरती है !



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