नदी
नदी
नदी सूख रही है
अपनी बढ़ती उम्र की
छोटी-बड़ी परेशानियों को
वहन करती हुई
नदी सूख रही है
अपनी अंतःव्याप्त
व्याधियों से भी
जीवन के उत्तरार्द्ध में
जी रही नदी
जानती है
अपने सुनहरे क्रमबद्ध वसंत के
अनिवार्य संघाती क्षरण के बारे में
यौवन के ढलान पर
खोती अपनी सुडौलता
नदी सूख रही है
दूसरी नदियों की तरह
सूखी हुई नदी
बहती है मगर
इतिहास के पन्नों में
स्मृतियों के अंतर्स्थलों पर
और कविता के अनुभूत,
पुनर्सृजित घाटों से
सूखी हुई नदी
कब सूखती है पूरी तरह...