गुनगुनी सी धूप
गुनगुनी सी धूप
अंजुरी में भर लेने दो
कल पता क्या धूप
ये खिले ना खिले
बादलों और शीतल हवाओं में
आजकल है खूब बनी
धूप से मानों दोनों की है
ठनी
धूप गर थोड़ी मिले तो थोड़ी
तुम्हारे प्यार की,
गर्माहट बने अहसास में
वरना तो सीली पड़ी है
नगरी ये जज्ब्बात की
यूँ ही बदलते रहना फितरत है
मौसम की सुनो
क्यों बदलते हैं इंसा
बात ये मुश्किल समझनी
हम सहेजें ही सदा
दौलत रिश्तों की रहे
पर फरेबी बन गये रिश्तों के
ये ढेर भी
गुनगुनी सी धूप थोड़ी अंजुरी में
भर लेने दो
शायद रिश्तों में गर्माहट थोड़ी बने
दूरियों की सीलन हटे और
प्रेम का संचार हो।