चिड़िया
चिड़िया
रात होते ही चिड़िया छिप जाती है,
अंधेर में देखना तनिक कठिन होता है,
फिर सुबह उसकी चहचहाहट सुनकर,
मुझे भी जागने की इच्छा होती है !
जागना नींद से नहीं,
कल से !
जैसे चिड़िया सबकुछ भुलाकर,
एक नई शुरुआत करती है,
शायद कल रात आँधी में,
घोंसला उड़ गया था उसका,
आज बड़ी हैरान - सी दिख रही थी,
सुबह इधर - उधर नज़र घुमाकर,
तिनका ढूँढ रही थी शायद !
आत्मविश्वास की कायल हो गई मैं उसकी,
उसका तो घर ही उजड़ गया,
कोई बनाकर भी नहीं देगा उसे,
खुद बनाएगी, रहेगी,
फिर टूटेगा आँधी में किसी दिन,
पर हार नहीं मानेगी !
जब तक जियेगी, घर बनाएगी,
सपनों में नहीं, हकीकत में जीती है वो,
इसलिए जानती है सबकुछ आसान है,
मैं तो देख पा रही हूँ उसको,
शायद यूं ही रोज़ देखते - देखते,
सीख जाऊँगी मैं भी,
शून्य से शुरू करना ज़िन्दगी,
तज़ुर्बों को संग लिए...।