वो कौन थे
वो कौन थे
जो मर गए सड़कों पर
रोटी के इंतजार में
या मार दिए गए
पागल भीड़ की हवस में
और वो जो शिकार हुए
बेनाम बम्ब विस्फोट के
कौन थे वो लोग।
कहीं वो तो नहीं
जिन्होंने यातनाएँ दी थी
साम्राज्य की दीवारों के पीछे
या मार डाले थे हज़ारों
गैस के लाक्षाग्रहों में
या कहीं वो तो नहीं
जिन्होंने चुपचाप देखा था
हज़ारों लाखों को मरते।
धर्म को प्रतिष्ठा मिली थी
या नौकरियाँ मिली थी जिन्हें
उनके मरने के बाद
नहीं वो ज़माना बीत चुका
अब युद्ध वैसे नहीं रहे
वो सब लोग मर चुके हैं
जो हिस्सा थे कलयुग का।
अपनी अपनी सज़ा ले
जा चुके हैं वो सब लोग
कोई ढूँढता नहीं फिरता
समंदरों पार नए जहाँ को
अब हज़ारों बीमार नहीं होते
सिकंदर होना नहीं अब किसी को
अब हिट्लर पैदा नहीं होते।
कहीं नहीं मिलती क़ब्रें बनाम
कोई बटोरे नहीं बैठा
उस समय की यादों को
अब कोई जंग नहीं करता
तो ये लोग कौन है।
शायद आम लोग ही हैं
खुदा की मर्ज़ी भोग रहे
समाज में जीते मरते हुए
जिस समाज की कल्पना
उन सब ने की थी
जो मर गए
मार दिए गए
जिन्होंने मार डाला
तुमने और मैंने भी।