पिता
पिता
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एक पेड़ को देखा,विशाल था घना था!
लगता था नीचे उगती झाड़ों को,
वो आश्रय देने हेतू बना था!
तना कठोर था परंतु,
कई गड्ढे थे उसमें!
पक्षी, पल्लव इत्यादि,
निवास करते थे जिसमें!
तने से कोई रस सा,
मानो निर्बाध बहता था!
वो वृक्ष पर-सहायतार्थ,
मानो तैयार सा रहता था!
कोई बेल गर मानो,
उसे ढाँपने की करती थी कोशिश!
उगने देता खुद पर वो वृक्ष,
सहता था हर विषधर का वो विष!
ऐसा लगता था मानो वो,
वृक्ष पर-कल्याण हेतू जीता था!
मेरी राय में, हो सकता है वो,
पिछले जन्म में किसी का पिता था!