तुम बहते हो मुझमें,
तुम बहते हो मुझमें,
मेरे मन के भीतर
कण कण में अलक्षित बहते हो
बादलों के जैसे
मैं क्षुब्ध सी रममाण तुझमें बसी हूँ
बरखा के जैसे
उगते प्रहर में खुलते ही चक्षुद्वार
पगरव गुँजे उर के अंदर एक प्यारा सा बवंडर उठे
बजते रहते है मंदिर की घंटीयों से
तुम्हारे खयाल रोज रोज
एक साया मेरी नस नस में
रुह से मेरी छू के मिले दिनभर चले
मेरे साथ साथ
रात को बजते हो चाँदनी की आहट से
उजागर होते हो मेरे अंदर
रौशन खुदा के नूर जैसे
मैं अपलक बस निहारते
घुलती जाती हूँ बहती जाती हूँ
तुम्हारे जादुई रौशनी के साये से लिपटकर
और ये सिलसिला चलता रहता है तुम्हारा मेरे
खून में बहते लहू के जैसे बहते हो तुम
हरदम मुझमें सदियों से दिन रात