हमारी अधूरी कहानी
हमारी अधूरी कहानी
इन धूल जमी किताबों पर,
जब भी हाथ फिराता हूँ
बीते दौर का खूबसूरत मंज़र,
आँखों के सामने पाता हूँ
संकरी गलियों से गुज़र कर,
जब वो चौराहे पर आती थी
वो दिलकश नज़ारा होता था,
बदन में सिरहन मच जाती थी
उन हसीं लम्हों के बीच,
एक ऐसा पन्ना भी पलट गया
सुर्ख हो चुका गुलाब का फूल,
यादों में जाकर फिर खिल गया
महक उठा शबिस्तान हमारा,
उनके गजरे का जब जिक्र आया
चन्दन के ढेर पर मानो ज़ुल्फों को,
नाग की भाँति लिपटा पाया
धूल की उड़ती फाकों के बीच,
एक लम्हा रंग में सराबोर पाया
अबीर लगे इन गालों को देखकर,
लगा चाँद बगीचे में निकल आया
किस्मत की बेवफाई ने हमको,
मुहब्बत से महरूम कर दिया
इस किताब के कुछ पन्नो को,
इसलिए कोरा ही रहने दिया...।