बारफ्ता सी गुज़र गयी कोई यूँ ही
बारफ्ता सी गुज़र गयी कोई यूँ ही
बारफ्ता - सी गुज़र गयी कोई यूँ ही
क़ि निग़ाहें उठी पर परछाईं तक दिखाई न दी।
वो हवा का झोंका था या थी किसी दीवाने की चाहत,
पाज़ेब तो बजी पर आहट तक सुनाई न दी।
बारफ्ता सी गुज़र गयी कोई यूँ ही
दिल तो धड़का पर धड़कन तक सुनाई न दी...।