टेलीफ़ोन
टेलीफ़ोन
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हर रोज़ नया सपना होता है
हर रोज़ कोई अपना होता है
हर रोज़ मेरा माँ से झगड़ा होता है
हर रोज़ दुलार बाबा का मिलता
हर रोज़ नई शैतानी करती
हर रोज़ भाई से लड़ लेती हुँ
कहने को तो सब अच्छा है
जोबन मेरा भी कच्चा है
मेरी जीवन का कोई पतवार नहीं है
मेरी आँखो के पानी का कोई ढार नहीं है
करना चाहती हुँ तुमसे मैं ये सारी बातें
अफ़सोस मगर मेरे घर में टेलीफ़ोन नहीं है।।
हर रोज़ तुम्हारी राहें तकती हूँ
हर रोज़ तुम्हें मैं ख़त लिखती हूँ
हर रोज़ तुम्हरी चाहत में
कुछ हँसतीं हुँ कुछ रोती हुँ
हर रोज़ हमारे बच्चों के नाम सोच मैं लेती हूँ
हर रोज़ तुम्हरी फ़ोटो को सीने से लगा मैं सोतीं हूँ
मेरे इन सारे अरमानों को सुनने वाला कोई और नहीं हैं
अफ़सोस मगर मेरे घर में टेलीफ़ोन नहीं है||