“तुम्हारा गिफ्ट किया हुआ वो पेन”
“तुम्हारा गिफ्ट किया हुआ वो पेन”
तुम्हारा गिफ्ट किया हुआ वो पेन
स्याही ख़त्म हो गई है अब जिसकी
मैं फिर भी हर रोज
डायरी के पिछले पन्नों पर
लिखता हूँ इससे कुछ ऐसा
जिसे सिर्फ़ तुम और मैं ही पढ़ सकते है
और कोई दूसरा नहीं
हर्फ़ की जगह कुछ उभरे उभरे एहसास होते है
छूने से जिनकी पहचान मालूम हो
उसी पेन से मैंने इक नज़्म भी लिखी है
ज़िक्र है जिसमें तुम्हारी आँखों का
वही कत्थई आँखें जिनमें अक्सर
मैं ख़ुद को तलाशा करता था
मोहब्बत में डूबी हुई एक ग़ज़ल
जिसके सारे रदीफ़ और काफ़िये
तुम्हारे नाम से ख़ुद को जोड़ते रहते हैं
वैसे तो अमूमन स्याही से लिखी गई इबारत
धुल जाया करती है बारिश में
मगर ना जाने ये कैसी लिखावट है
तेरे नक़्श की मेरे अक्स पर
अरसे बाद भी वैसे ही उभरी हुई है
जैसे बरसों पहले थी
कई सावन आकर गुज़र गऐ
हर बार इसका रंग
पहले से ज्यादा गाढ़ा हो जाता है
तुम्हारा गिफ्ट किया हुआ वो पेन
स्याही ख़त्म हो गई है अब जिसकी
मैं फिर भी हर रोज
डायरी के पिछले पन्नों पर
लिखता हूँ इससे कुछ ऐसा
जिसे सिर्फ़ तुम और मैं ही पढ़ सकते है, और कोई दूसरा नहीं ।।