मेरी ख़्वाबीदा
मेरी ख़्वाबीदा
आज तू मयस्सर नहीं मेरे रूबरू,
तेरी नवाज़िश में खुदा क्या करूँ,
एक हर्फ लिखता हूँ मेरी ख़्वाबीदा,
आज बिन तेरे, तेरी ख्वाईश क्या करूँ।
आज तू मयस्सर नहीं मेरे रूबरू,
इनायत तेरी इज़्तिरार कर गई,
तेरी क़ुर्बत में कलाम क्या पढू,
मुझे इंतज़ार है बस तेरा ख़्वाबीदा।
आज तू मयस्सर नहीं मेरे रूबरू,
उन्स को लरज़ते लब्ज़ो का क्या करूँ ,
रिवायत है लहज़ा भी है लिहाज़ क्या करूँ,
रूहानियत आँखों में, रूह का क्या करूँ।