अलाव
अलाव
मैं एक अलाव की चिंगारी हूँ
हवा के इंतज़ार में
धुआँती छिपलियो से बतियाती
छाती में जलती आग को
चूमकर लाल हो जाने का माद्दा रखती
पर अक़्सर बुझ जाया करती हूँ
आँखों से टपके नमकीन जल से
किसी मसीहा के इंतज़ारमें बावले लोग
बस एक भीड़ है और
उन्मादी हो जाने की हद तक बैचेन
मुझे डर लगता है
भीड़ के हिंसक पशु में बदलने से
और मैं अपनी तरफ़ आती हवा को
लौटा देती हूँ,थोड़ी सी देर तक ही सही
बचा लेती हूँ मेरे आसपास उकड़ू बैठे
कल का आज