बचपन
बचपन
फँस गए, हम यूँ भला, ज़माने के दलदल में
अच्छे भले थे, हम उस बचपन के ज़माने में।
नाप आते थे हम, उन गलियो की दूरियाँ, चन्द मिनटों में
यहाँ घण्टो चलने पर भी, रास्ता छूट जाता है।
वो बचपन ही था, जिसमे हमें न कल की चिंता थी
यहाँ हर आदमी को आने वाले कल की चिंता है।
बिना उद्देश्य ओर निःस्वार्थ सारे काम होते थे
यहाँ हर आदमी के पीछे कुछ न कुछ स्वार्थ होता है।
फँस गए हम, यूँ भला ज़माने के दलदल में
अच्छे भले थे हम उस बचपन के ज़माने में।।