पावन एहसास
पावन एहसास
धूनी जली उर के कागज़ पर,
उमड़ा धुआं स्पंदित होते
तुम्हारे प्रति एक अर्चन सा...
मेरे भाव की भंगिमा
पहचान सको तो पहचान लो।
आज बहते हैं दिल के पर्वत से
गंगा की धार से पावक शब्दों के
आबशार हैं...
ना...
मोहांध नहीं साधक समझो,
मिलन की आस नहीं
संगम की चाहत समझो,
शब्दावली से चुनकर
अनमोल हीरे जड़े हैं,
भावनाओं की बिंदी लगाई
स्पंदनों के भाल पर।
भ्रमित नहीं तुम्हारे तन से
मन की पावनता का ज्ञात है,
लिखना मेरा तुम पे महज़
इश्क का गुब्बार नहीं।
अर्जुन ने जो श्रवण किया
समझो गीता का जो सार है...
हाँ, ये मेरे दिल के एहसास है॥