एक लडकी निर्भया थी
एक लडकी निर्भया थी
एक जादु की पुड़िया सी
चचंल सी खिलखिलाती हँसी
जीवन तो अभी जीने ही लगी थी ,
जग जीवन अंधेर नगरी
राक्षसों की टोली आयी
इतने सारे भेड़ियों मे
फूल भला कहाँ टिक पाती
वो लड़ी थी,वो लड़ी थी
कायरों की इस समाज में भी
वो आख़िर तक लड़ी थी।
एक लड़की थी सुन्दर सी ,
एक लड़की थी निर्भया सी।
इस घर आगंन में
खेलती,नाचती,गाती थी गुड़िया
दिन की सुरज,रात का चन्दा
सबकी लाड़ दुलार थी गुड़िया ।
पिता के आँखों की तारा सी
एक बेटी प्यारी सी
एक लड़की निर्भया सी।
कभी डांट फटकार थी
कभी प्यारी सी पुकार थी
माँ-माँ करती,पल्लू पकड़ती
आज भी तु हेँ मेरी ज्योति
मेरे अन्दर में लौह बनी
एक जुनून सी
एक लड़की निर्भया सी ।
न जाने क्या गलती थी
जिसकी सजा मुझे मिली
आज भी ना समझ पाती
मर कर् भी ना मर पाती
यही कहीं भटकती रही
आज जब आभास हुआ तो
सब के अंदर में मिली ,
सब की आखेँ भरी हुई
फिर भी थी होंठों पे हंसी
आज मुझे एहसास हुआ
आज मैं आजाद हुई
मैं थी,मैं हूँ ,मैं ही रहूँगी
हर लड़की में निर्भया सी
प्यारी सी,सुंदर सी एक लड़की निर्भया सी ।।।