उसकी गलियां
उसकी गलियां
पहले बार बार उसके कहने पर भी,
मैं जहां से लौटकर नहीं आता था।
आज उसकी गलियों की तरफ,
मैं कभी मुड़कर भी नहीं जाता।
जहां कभी मैं उसकी जुल्फों में,
आँखे बंद कर खो जाता था।
मन ही मन बाँहों की गर्मी में,
प्यार के गीत गुनगुनाता था।
जहां कभी भी दिल उसके बगैर,
सहम कर बेचैन सा हो जाता।
आजकल मैं उसकी गलियों में,
कभी लौट कर नहीं जाता।
प्यार बसता था कभी जहां,
अब वहाँ सिर्फ एक नफरत है।
सुना तो था मैंने भी कभी
बदलना इंसानों की फितरत है।
लगता है कि वो आयीं ही थी,
मुझे बेहद तड़पाने के लिए।
शायद प्यार का एहसास देकर,
धोखे का स्वाद चखाने के लिए।
उन गलियों को देखकर अब,
खुद ही मुड़ जाता हूँ।
उसकी गलियों में लौटकर,
कभी नहीं जाता हूँ।