वाह ! पुरुष क्या सोच तुम्हारी
वाह ! पुरुष क्या सोच तुम्हारी
नारी है, जो घर को तोड़े
नारी ही, घर मे कलह का कारण
नारी, सब झगड़ों की बीमारी
वाह ! पुरुष क्या सोच तुम्हारी।
तू ही तो है घर का रक्षक
पैसे, प्यार, कार्य परिपूर्ण
नारी तो है सिर्फ महामारी
वाह ! पुरुष क्या सोच तुम्हारी।
त्यागमयी मूरत हो तुम
प्यार की सूरत सिर्फ तुम
परिवार भाव भौंकती ये नारी
है आदत उसकी बड़ी पुरानी
वाह ! पुरुष क्या सोच तुम्हारी।
सलाम, तेरी समझ को
सलाम, तेरे गुरूर को
वाह ! पुरूष क्या सोच तुम्हारी।
वाह ! पुरुष क्या सोच् तुम्हारी।
वाह !