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केशव से कुछ प्रश्न

केशव से कुछ प्रश्न

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केशव,तुम कहते हो न

राधे तुम्हारी चिर-संगिनी है

राधिके से ही तुम्हारी शोभा है

राधा संग जोड़ी की छवि न्यारी है

फिर क्यों रुक्मणी संग विराजे हो

बनके द्वारिकाधीश

पोषते हो सत्यभामा का दर्प

दोहते हो जामवती की निरीहता

क्यों सोलह हजार रानियाँ

एक सौ आठ पटरानीयाँ 

बढ़ा रहीं शोभा तुम्हारे रंगमहल की

ये छल मात्र छल ही नही

एक अपराध है अक्षम्य

किया जो मेरे संग-संग

बृज की गोपिकाओं से भी

क्यों किया केशव

भावनाओं का दोहन

इच्छाओं का शोषण

तृण-तृण का ब्रज के

धेनु-वत्स,मयूर कोयलें

और वृन्दा की मंजरियाँ तक

छली गईं तुमसे

वो कदम्ब का तरु,वो यमुना की लहरें

वो वृन्दावन का रास

कैसे विस्मृत कर दिया तुमने

केशव शायद ये सब तो

सह भी लेंगे वियोग

किन्तु

तुमने तोड़ा है मैया का हृदय

यशोदा सी माँ

सृष्टि को ही विस्मृत कर बैठी थी

अपने लल्ला अपने कान्हा के लिए

कभी पलट के नही देखा

तुमने

क्यों आखिर क्यों केशव


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