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माँ की विदाई

माँ की विदाई

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समय ने जब
अपना चक्र चलाया
माँ के दुखो का अन्त
क्षण भर में
कर दिया सफाया
सारे रिश्ते नाते
ममता करूणा दया
मोह माया रिश्तों में ही
सिमट कर रह गई
कल तक जो सभी के
बीच अचेतन थी
जीवन के अन्त को
क्षण भर में पा गई
बस कुछ ही क्षणो में
सभी कृन्दन में लग गये
कुछ बुज़ुर्ग कुछ ज्ञानी
मन ही मन भाव
विभोर हो गये
जानते हैं जीवन का
कटु सत्य यही है
जीवन के साथ ही
मृत्यु हर किसी की
एक न एक दिन
अटल है
जो यहाँ आया है
एक न एक दिन जायेगा
सभी बन्धनों रिश्तों को
यही त्याग जायेगा
कल तक सभी
ममतामयी माँ
को देखकर ईश्वर से
मुक्ति की प्रार्थना
दुआ वंदना भीख
माँग रहे थे
मृत्यु शैया में पड़े 
उस जर्जर शरीर को
दुखी मन से देख रहे थे
असीम कष्टों दुखो वेदना
को सहती उस मां को
जो हड्डियों का ढांचा
बनी पड़ी कराहती थी
तड़पती थी न जाने
क्या-क्या बड़बड़ाती थी
होश था न हवाश था
खाने की न पीने की
मन मे कोई आस थी
क्योकि अन्त का जो
समय आ गया था
जो न किसी ने सोचा था
न किसी ने जाना था
माँ के जीवन के अन्त ने
सभी को रूला दिया
माँ के अन्त ने आज
वो क्षण दिखा दिया
अन्त के साथ सभी
क्षण भर मे सभी अंतिम
विदाई में लग गये
कुछ अन्त होने की
खबर देने में लग गये
कुछ आपसी कुछ
कुछ करीबी कफन की
तैयारी में लग गये
कुछ ही समय में
मृत शरीर के ढाँचे को
पंच तत्वों में मिला दिया
सभी ने मिलकर कफन का
अंतिम दस्तूर पूरा कर दिया
वाह रे जीवन वाह रे
जीवन का ये अन्त
एक दिन सभी का आयेगा
और क्षण भर में पंचतत्वों
में विलीन हो जायगा
माता-पिता भाई-बहन
सभी रिश्ते यहीं
पर छूट जाएंगे
न कोई तेरा न मेरा
सब यहीं रह जाएगे।


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