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और मैं बदल गयी

और मैं बदल गयी

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थोड़ी मुश्किलें आई,

थोड़ा वक्त लगा !

पर सीख लिया मैंने,

जमाने के संग चलना !


सच को अपने अंदर छुपा,

खट्टे-मीठे झूठ बोलना !

बेवजह मुस्कुराना,

बात बात में हँसना !


वो गम्भीरता जो

मेरा स्वाभाव था

सब....सब 

गहराई में चला गया

कई तहें जम गई इन पर

सोचती थी,


डूबती थी.. खुद में कभी

वो अकेलापन 

जो मुझे प्रिय था

जाने कहाँ गुम हो गया !


अब तो भीड़ में 

जीने की आदत सी हो गयी !

सब बदल गया

वक्त के साथ

जाने कैसे

मैं खुद को अब आईने में

पहचान नहीं पाती।


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