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छाँव को बचा लो

छाँव को बचा लो

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दफ़नाते चले जा रहे हो

कांक्रीट के कहर के नीचे 

में माँ हूँ तुम कहते हो जिसको 

आधार हूँ तेरे अस्तित्व का


काट काट कर मत छाँटो

मैं रो-रोकर पुकारुं 

मुझे जमीं से मत उखाड़ो

धूप तुझे जब लगती है


है हाज़िर ठंडी छाँव मेरी 

छलनी होता सीना है

कुल्हाड़ी से अब मत मारो

बादल से पूछो जाकर


बूँदों ने मुझको पाला है

हर मौसम में सींचा हमको,

मिट्टी-करकट झाड़ा है

मुझे जमीं से मत उखाड़ो।


इस धरा की सुंदर छाया हूँ 

हम पेड़ों से बनी हुई है

मधुर-मधुर ये मंद हवाएं,

अमृत बन के चली हुई हैं


मुझसे से नाता है जीवों का,

जो धरा पर जन्मा है 

उन सबका हमीं से रिश्ता है

मुझसे ही सब प्राणी का


अमृत का रसपान है

तुलसी से लेकर पीपल तक

हर घर में मेरा राज है

मुझसे बनती औषधि तब


तुम सबकी पनपती जान है

फल-फूल का है मेला लगता 

मंडी ओर बाजार में 

हमीं से सुंदर जीवन मिलता


खाने ओर खिलाने से

अगर जमीं पर नहीं रहे हम,

जीना दूभर हो जाएगा

त्राहि-त्राहि पुकारोगे


हाहाकार भी मच जाएगा

कर लो कोशिश मिलकर

बाल-बाल मुझे बचाने की

हाथ से हाथ मिलाकर

रक्षा करो अपनी ही साँसों की।


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