मिलन की रात
मिलन की रात
लो मेरे ख़्वाब में बसी वो शाम आयी है
इस शाम की बेला और बदली भी छायी है
रिमझिम फूहार संग तड़ित की झड़ी है
लिये संग चाहत पिया की नज़र यूँ पड़ी है।
बहके दो दिल और मिलन की घड़ी है
शीत मंद मलय संग चिंगारी की आँख लड़ी है
दो उर से उठी गर्म साँसें जली है
रुख़सार पे मेरे कुछ हया भी सजी है।
हौले से सरकी पल्लू की गड़ी है
ऊँगली से उनकी मेरी ठोड़ी हिली है
लब है खामोश पर दिल में मची खलबली है
पलकें मूँदे पिघलती ही जाऊँ।
आगोश में उसकी मेरी काया पड़ी है
धीरे से बाँहों में घेरे तन को मेरे
साजन नें कमर पे चुटकी खणी है
बरसे गगन से बारिश की झड़ी पर
कुँवारे दो तन में कुछ आग सी लगी है।
बहती ले जायेगी बरसाती शाम ये
बेकल है अरमाँ और मौसम की कशिश है।