अब कुछ थकने लगा हूँ..
अब कुछ थकने लगा हूँ..
सुबह के उजियारे से
रात के अन्धकार तक
बचपन की शैतानी से
बुढ़ापे के संताप तक
मन की मासूमियत से
षड्यंत्री दिमाग तक
परजयी पीड़ा से
विजय भरे अभिमान तक
गरीबी के गीले आटे से
बिगड़े हुए नवाब तक
सूखे खेत अौ दरख्तो से
बरसाती उफान तक
कालजयी प्रतिमा से
नव-सृजन संहार तक
इस कथा कल्पना से
सत्य के संज्ञान तक
मेरी इस अभिव्यक्ति से
आपके अनुमान तक
नन्ही किलकारी से
जीवन की थकान तक...!