Sanjay Pathade Shesh
Abstract
उनके
बनाए पुल
पहली बरसात
में ही
ढह गए।
और
भ्रष्टाचार की
कहानी
चुपचाप
कह गए।
रेवड़ी
जनप्रतिनिधि
अजब दौर है
आदत
श्रद्धा बनाम ...
मोहरा
मोहरे
विश्वास
आश्वासन
हाइकू रचनायें
यादों के बोझ से अलग होकर चल रहे सफर के खत्म हो जाने के बाद। यादों के बोझ से अलग होकर चल रहे सफर के खत्म हो जाने के बाद।
लोगों के विचार बदल रहे, यह किसी का नहीं दोष है। लोगों के विचार बदल रहे, यह किसी का नहीं दोष है।
कागज़ी हैं सब यहाँ........! कागज़ी लोग,कागज़ी रिश्ते। कागज़ी हैं सब यहाँ........! कागज़ी लोग,कागज़ी रिश्ते।
कितनी बड़ी लाचारी है, साक्षरता पर निरक्षरता भारी है। कितनी बड़ी लाचारी है, साक्षरता पर निरक्षरता भारी है।
उड़ना चाहता है, उस अनन्त आकाश में जानना चाहता है इस सौंदर्यमयी संसार को. उड़ना चाहता है, उस अनन्त आकाश में जानना चाहता है इस सौंदर्यमयी संसार को.
पीते नहीं साकी शराब साकी को ही पी जाता है मदिरालय का आँगन। पीते नहीं साकी शराब साकी को ही पी जाता है मदिरालय का आँगन।
काई की चादर लपेटे, वो बदहाल दीवार। हर बारिश में कांप जाती है। काई की चादर लपेटे, वो बदहाल दीवार। हर बारिश में कांप जाती है।
अरमानों का खिल जाना, शुक्रिया हमारी जिंदगी में आने के लिए। अरमानों का खिल जाना, शुक्रिया हमारी जिंदगी में आने के लिए।
सबसे ख़ुश इंसान हैं वो जो खुशियां बांटा करते हैं सबसे ख़ुश इंसान हैं वो जो खुशियां बांटा करते हैं
वो मुझे मिला और मुझसे मिला हीं नहीं इस बात का मुझे अब कोई गिला भी नहीं। वो मुझे मिला और मुझसे मिला हीं नहीं इस बात का मुझे अब कोई गिला भी नहीं।
नीम पेड़ की, ऊपरी डाल की ,ओट में छिपे चाँद को आज मैंने छेड़ दिया । नीम पेड़ की, ऊपरी डाल की ,ओट में छिपे चाँद को आज मैंने छेड़ दिया ।
बुढ़ापे में सहारा उनका तू परित्राण बन जाना।" बुढ़ापे में सहारा उनका तू परित्राण बन जाना।"
सबका मुआवजा देने को ज़मीर हमारे साथ नहीं। सबका मुआवजा देने को ज़मीर हमारे साथ नहीं।
एक प्याली चाय की और जिंदगी जैसे मानो कोई गहरा रिश्ता। एक प्याली चाय की और जिंदगी जैसे मानो कोई गहरा रिश्ता।
यही केवल एक चीज उपलब्ध है जिसे आप खरीद नहीं सकते। यही केवल एक चीज उपलब्ध है जिसे आप खरीद नहीं सकते।
मन के घोंसले से उड़ चले, हैं आज यादों के परिंदे। मन के घोंसले से उड़ चले, हैं आज यादों के परिंदे।
न जाने कितने सदमे हम किसी संदूक में कैद रखते हैं. न जाने कितने सदमे हम किसी संदूक में कैद रखते हैं.
लेकिन इस बार हर बार की तरह नहीं लेकिन इस बार हर बार की तरह नहीं
शाख से जुदा पत्ते की निशानी पूछिये। किसी टूटे हुए पैमाने की जुबानी पूछिये।। शाख से जुदा पत्ते की निशानी पूछिये। किसी टूटे हुए पैमाने की जुबानी पूछिये।।
कुछ भी तो नहीं है लिखने को , पर रात अभी भी बाकी है . कुछ भी तो नहीं है लिखने को , पर रात अभी भी बाकी है .